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ग़ज़ल/ गीतिका

आकाश महेशपुरी
आकाश महेशपुरी
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ग़ज़ल/गीतिका
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ये’ कलयुग है यहाँ तो पाप को मिलता ठिकाना है
कि सच मैं बोल कर टूटा बड़ा झूठा जमाना है

यहाँ पर पाप हैं करते कि हम औ आप हैं करते
बहुत दौलत जुटा कर भी हमें सब छोड़ जाना है

न पूछो हाल कैसे हो गुजारा हो रहा कैसे
मे’री मजबूरियों पे क्या तुझे फिर मुस्कुराना है

हैं’ यादें आज भी मेरा कलेजा चीर देतीं जो
वही यादें बचीं मुश्किल जि’न्हें अब भूल पाना है

भला ‘आकाश’ तुमसे हम शिकायत किसलिए करते
तु’म्हारा काम जब केवल सभी का दिल दुखाना है

ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी
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पता-
वकील कुशवाहा ‘आकाश महेशपुरी’
ग्राम- महेशपुर, पोस्ट- कुबेरस्थान, जनपद- कुशीनगर, उत्तर प्रदेश

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